हिंदी भाषा भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्रमुख भाषाओं में से एक है। इसका उद्भव संस्कृत से हुआ है। समय के साथ-साथ प्राकृत और अपभ्रंश रूपों से गुजरते हुए हिंदी का निर्माण हुआ। संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और फिर अपभ्रंश से हिंदी का स्वरूप विकसित हुआ। यही कारण है कि हिंदी को संस्कृत की पुत्री भाषा कहा जाता है।
हिंदी भाषा की उत्पत्ति का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना माना जाता है। 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हिंदी के प्राचीन रूप देखने को मिलते हैं। इस काल में भाषा पूरी तरह से विकसित नहीं थी, लेकिन अवहट्ट और अपभ्रंश रूपों में लोकभाषा का प्रयोग हो रहा था। धीरे-धीरे यही भाषा आगे चलकर हिंदी के रूप में स्थापित हुई।
हिंदी साहित्य की उत्पत्ति भी इसी काल से मानी जाती है। प्रारंभिक हिंदी साहित्य मुख्यतः धार्मिक और भक्ति भावनाओं से जुड़ा था। 12वीं से 14वीं शताब्दी तक का काल हिंदी साहित्य का आदिकाल कहा जाता है। इस समय में वीरगाथाएँ, धार्मिक काव्य और लोकगीत प्रमुख रहे। चंदबरदाई की पृथ्वीराज रासो आदिकाल का प्रसिद्ध ग्रंथ है।
इसके बाद हिंदी साहित्य में भक्ति आंदोलन के साथ नई ऊर्जा का संचार हुआ। कबीर, तुलसीदास, सूरदास और मीरा जैसे कवियों ने हिंदी साहित्य को आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक दृष्टि दी। फिर रीतिकाल और उसके बाद आधुनिक काल में साहित्य ने समाज सुधार, राष्ट्रीय जागरण और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार हिंदी भाषा और साहित्य का उद्भव प्राचीन संस्कृत और अपभ्रंश परंपरा से हुआ और यह क्रमशः धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और आधुनिक संदर्भों से गुजरते हुए आज एक समृद्ध और व्यापक साहित्यिक धरोहर के रूप में स्थापित हो चुका है।
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