हिंदी साहित्य केवल भाषा की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, समाज और जीवन मूल्यों का दर्पण है इसका इतिहास हजारों वर्षों की यात्रा है, जिसमें आदिकाल की वीरगाथाएँ, भक्तिकाल की भक्ति-रसधारा, रीतिकाल का श्रृंगार-रस, आधुनिक युग का नवजागरण और समकालीन साहित्य की विविधता शामिल है।
हिंदी साहित्य का इतिहास हमें यह समझने का अवसर देता है कि समय के साथ साहित्य कैसे बदलता गया और कैसे इसने समाज, संस्कृति, राजनीति और आध्यात्मिकता को दिशा दी।
यह कोर्स विद्यार्थियों, शोधार्थियों, लेखकों और साहित्य प्रेमियों के लिए बेहद उपयोगी है, क्योंकि यह हिंदी साहित्य की सम्पूर्ण यात्रा को सरल और व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करता है।
हिंदी साहित्य का परिचय
-
साहित्य का अर्थ और परिभाषा
-
हिंदी भाषा और साहित्य की उत्पत्ति
-
हिंदी साहित्य की विशेषताएँ
-
हिंदी साहित्य के प्रमुख स्रोत
आदिकाल (10वीं से 14वीं शताब्दी)
-
आदिकाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
-
प्रमुख काव्य प्रवृत्तियाँ – वीरगाथा काव्य
-
आदिकालीन कवि – चंदबरदाई, जगनिक आदि
-
आदिकाल की साहित्यिक विशेषताएँ
भक्तिकाल (14वीं से 17वीं शताब्दी)
-
भक्तिकाल का सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
-
निर्गुण काव्यधारा – कबीर, रैदास, दादू
-
सगुण काव्यधारा – तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई
-
भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएँ और महत्व
रीतिकाल (17वीं से 19वीं शताब्दी)
-
रीतिकाल का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
-
रीतिबद्ध और रीतिमुक्त काव्यधारा
-
प्रमुख कवि – बिहारी, केशव, देव, पद्माकर
-
रीतिकाल की विशेषताएँ और सीमाएँ
आधुनिक काल – प्रारंभिक चरण (19वीं शताब्दी)
-
आधुनिक काल का उद्भव और पृष्ठभूमि
-
भारतेंदु युग – भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके योगदान
-
आधुनिक गद्य साहित्य की शुरुआत
-
पत्रकारिता और नाटक का विकास
द्विवेदी युग (1900 – 1920 ई.)
-
महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी गद्य का विकास
-
कवियों और गद्यकारों का योगदान
-
साहित्य में सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना
-
द्विवेदी युग की विशेषताएँ
छायावाद (1920 – 1936 ई.)
-
छायावाद का उद्भव और परिभाषा
-
प्रमुख कवि – जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा
-
छायावादी कविता की विशेषताएँ
-
छायावाद का प्रभाव और सीमाएँ
प्रगतिवाद और प्रयोगवाद (1936 – 1950 ई.)
-
प्रगतिवाद की विशेषताएँ और उद्देश्य
-
प्रमुख कवि और लेखक – नागार्जुन, त्रिलोचन, अज्ञेय, आदि
-
प्रयोगवाद और नई कविता की प्रवृत्तियाँ
-
साहित्य और समाज में परिवर्तन
नई कविता, अकविता और समकालीन साहित्य (1950 – वर्तमान)
-
नई कविता आंदोलन
-
अकविता और उसके कवि
-
हिंदी उपन्यास, कहानी और नाटक का विकास
-
समकालीन हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियाँ
हिंदी साहित्य का भविष्य और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
-
हिंदी साहित्य और डिजिटल युग
-
हिंदी साहित्य का वैश्विक प्रसार
-
अनुवाद और अंतरराष्ट्रीय योगदान
-
भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हिंदी साहित्य की यह यात्रा केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए मार्गदर्शन भी है।
साहित्य हमें मानवीय संवेदनाओं से जोड़ता है और जीवन को समझने की नई दृष्टि प्रदान करता है।
👉 इस कोर्स के माध्यम से आप न केवल हिंदी साहित्य के विभिन्न काल और प्रवृत्तियों को जानेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि साहित्य समाज का प्रतिबिंब और परिवर्तन का साधन कैसे रहा है।
निरमा प्रकाशन – ज्ञान और साहित्य को सरल भाषा में हर पाठक तक पहुँचाने का प्रयास
0 Comments