हिंदी साहित्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है। इसका आधार केवल लिखित ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मौखिक परंपरा, लोककथाएँ, धार्मिक ग्रंथ, ऐतिहासिक दस्तावेज़ और समाज की जीवंत संस्कृति भी शामिल हैं।

सबसे पहला प्रमुख स्रोत है संस्कृत साहित्य। हिंदी भाषा संस्कृत से ही विकसित हुई है, इसलिए संस्कृत के महाकाव्य, पुराण, उपनिषद और नाट्य परंपरा ने हिंदी साहित्य को गहराई और आधार प्रदान किया। संस्कृत के काव्य और नाट्यशास्त्र ने हिंदी कवियों के लिए आदर्श का काम किया।

दूसरा स्रोत है प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य। संस्कृत से जनभाषा की ओर संक्रमण के समय प्राकृत और अपभ्रंश में बहुत-सा साहित्य रचा गया। यही साहित्य हिंदी के लिए आधारशिला साबित हुआ। अपभ्रंश काव्य और अवहट्ट रूप में लिखी रचनाओं से हिंदी के आरंभिक स्वरूप को जन्म मिला।

तीसरा स्रोत है लोक साहित्य और मौखिक परंपरा। लोकगीत, लोककथाएँ, कहावतें और दोहे हिंदी साहित्य की धारा को जीवन्त बनाते रहे। ग्रामीण और जनजीवन से जुड़ी यह परंपरा आज भी साहित्य की सबसे प्रामाणिक प्रेरणा है।

चौथा स्रोत है धार्मिक और भक्ति साहित्य। जैन, बौद्ध, संत और भक्त कवियों ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी। कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, रैदास और नानक जैसे कवियों ने भक्ति आंदोलन के जरिए साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया।

पाँचवाँ स्रोत है फारसी और अरबी साहित्य का प्रभाव। मध्यकाल में हिंदी पर फारसी और अरबी भाषाओं का गहरा असर पड़ा। अमीर खुसरो जैसे कवियों ने हिंदी को मिश्रित रूप दिया। इसी दौर में रीतिकालीन साहित्य का भी विकास हुआ, जहाँ शृंगार और दरबारी संस्कृति का प्रभाव दिखता है।

छठा स्रोत है आधुनिक काल का पाश्चात्य साहित्य। अंग्रेज़ी शासन के दौरान पश्चिमी साहित्य, समाज सुधार आंदोलनों और स्वतंत्रता आंदोलन ने हिंदी साहित्य को नई दृष्टि दी। प्रेमचंद, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद जैसे लेखकों ने साहित्य को आधुनिक संवेदनाओं और राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा।

अंततः, हिंदी साहित्य के प्रमुख स्रोत भारतीय संस्कृति, धर्म, लोकजीवन और ऐतिहासिक परिस्थितियाँ हैं। यही विविधता हिंदी साहित्य को गहराई, व्यापकता और जनजीवन से सीधा जुड़ाव प्रदान करती है।